कई सालो पहले शादी के दौरान एक लड़की के परिवार द्वारा पैसे, संपत्ति, आभूषण और अन्य कीमती चिज़े दूल्हे के परिवार को दि जाती थी, जिसे दहेज प्रथा कहा जाता था। लेकिन बदलते समय के साथ लोगों के अंदर लालच पैदा हुई और इस प्रथा ने एक बुराई का रूप धारण कर लिया। वर्तमान में यदि कोई महिला दहेज नहीं दे पाती तो उसे ससुराल में बहुत परेशान किया जाता है। आए दिन हम दैनिक समाचार देखते है कि दहेज के लिए एक महिला को जिंदा जला कर मार दिया गया या उसे कहीं और ले जाकर हत्या कर दी गई। आज के समय में ऐसी घटनाएं काफी तेजी से बढ़ रही है।
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दहेज प्रथा का अर्थ
दहेज शब्द की उत्पती अरबी भाषा में हुई थी, जिसका अर्थ होता है सौगात या भेट-उपहार। भारत में यह प्रथा सदियों से चली आ रही है। दहेज को साधारण भाषा में समझे तो शादी के लिए एक लड़की के परिवार द्वारा पैसे, संपत्ति और अन्य भेट-उपहार लड़के के परिवार को देना। दहेज लेने वाले कई नीच लोगो को मानना है कि लड़के का मूल्य लड़की से ज्यादा है, इसलिए दोनों के मूल्य को समान करने के लिए लड़की के परिवार को पैसे, आभूषण, जमीन और भी कई प्रकार की चीजें देनी पड़ती है। यहां महिलाओ का विवाह न होकर उनका सोदा हो रहा है।
वर्तमान में कई समाज द्वारा इसकी निंदा भी की जाती है। लेकिन आज भी कई लोग बिना दहेज के महिलाओं को नही अपनाते है। परंतु ऐसी सोच हमारे देश के भविष्य को खराब कर रही है। दहेज हमारे देश के विकास और उन्नति पर एक बड़ा तमाचा है। भारतीय कानून के तहत दहेज लेना और देना दोनों अपराध है। किन्तु आज भी भारत के कई परिवार और समाज में यह प्रथा खुलेआम चल रही है।
दहेज प्रथा का इतिहास
भारत प्राचीन काल से पुरुष प्रधान देश रहा है। यहां पुरुषो को ही हर जगह प्रधान माना जाता है। इसी वजह से हमारे देश में महिलाओं का शोषण होता है और उसी शोषण का एक रुप दहेज प्रथा है।
भारत के सबसे बड़े पौराणिक ग्रंथ रामायण और महाभारत में माता-पिता द्वारा बेटियो को दहेज देने का उदाहरण मिलता है। इसके अलावा उत्तरवैदिक काल में भी दहेज प्रथा के कुछ उदाहरण मिलते है। लेकिन उस समय दहेज प्रथा का स्वरूप आज की दहेज प्रथा से बिल्कुल अलग था। प्राचीन समय में महिलाओं को उनके पिता द्वारा दहेज में घोड़े, ऊंट और बकरी जैसी चीजें दी जाती थी। और वर पक्ष भी यह उपहार खुशी-खुशी स्वीकार कर लेता था। ससुराल में जाने के बाद इन सब उपहारों पर सिर्फ उस दुल्हन का आधिकार होता था।
बदलते समय के साथ लोगों की मानसिकता में बदलाव हुआ। अब पिता को अपनी काबीलियत और योग्यता देखकर बेटी को धन या उपहार देना पड़ता था। इसलिए मध्यकाल में इस प्रथा को स्त्रीधन नाम मिला। परंतु इस समय भी दहेज प्रथा का मुख्य उदेश्य यह था कि किसी परेशानी में बेटी को यह धन काम आएगा। इस समय भी बेटी के धन पर ससुराल वालों का कोई अधिकार नहीं था।
लेकिन इसके कुछ सालो बाद लड़के वाले लड़की के परिवार पर भेट-उपहार देने की विशेष मांग करने लगे। इसके साथ-साथ प्राचीन प्रथा के नाम पर लड़की के परिवार वालों पर दबाव बनाने लगे। और यही से दहेज प्रथा के नाम पर महिलाओं का शोषण होना शुरू हो गया। वर्तमान समय में इस प्रथा ने एक खतरनाक रूप धारण कर लिया है। आज एक माता-पिता को अपनी बेटी की शादी के लिए दहेज में धन और अन्य कीमती भेट-उपहार देने ही पड़ते है। अगर दहेज में धन और तोहफे नहीं दिये जाते तो ससुराल में लड़कियो को मारा जाता है। इस तरह आज के आधुनिक युग में दहेज प्रथा एक सामाजिक अभिशाप बन चुका है।
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दहेज प्रथा के कारण
किसी ने क्या खूब लिखा है कि हमारा समाज जिसे अपना ले वह दोष भी गुण में बदल जाता है, जैसे कि दहेज। इसकी वजह से हमारी कई बेटियों का जीवन बर्बाद हो गया है। लेकिन ऐसे क्या कारण थे, जिससे दहेज प्रथा हमारे देश की जड़ तक पहुंच गई। आइए एक-एक करके सभी को जानते है।
- पुरुष प्रधान समाज
दहेज को बढ़ावा देने का पहला कारण हमारा पुरुष प्रधान समाज है। पुरुष प्रधान समाज यानि ऐसा समाज जहां एक महिला को अपनी बात रखने का कोई अधिकार नही होता। उन्हें केवल घरेलू भूमिकाएं संभालने का अधिकार होता है। ऐसे समाज में महिलाओं का मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से शोषण किया जाता है। इसलिए महिला पर अपराध होने पर भी वह उसके खिलाफ आवाज़ उठाने से डरती है और दहेज जैसे कई अपराधों का शिकार हो जाती है।
- पुराने रीति-रिवाज
पुराने रीति-रिवाज दहेज लेने का सबसे आसान तरीका है। जैसे की अगर लड़की वाले दहेज देने से मना करे तो सिर्फ उनको यह कहना कि ये तो हमारे पूर्वजो की परंपरा है। इसलिए आपको दहेज देना ही होगा, नहीं तो हम शादी नहीं करेंगे। आखिर में लड़की वालो के पास कोई रास्ता नहीं होता और उन्हें दहेज देना पड़ता है। लेकिन ऐसे हरामि लोगो को कौन समझाए कि हमारे पूर्वजो के समय दहेज नहीं बल्कि इच्छा अनुसार उपहार दिए जाते थे। इन राक्षसों ने दहेज प्रथा को अपने स्वार्थ के लिए उपयोग किया है ।
- अशिक्षा या निरक्षरता
अशिक्षा भी दहेज फैलाने का एक बड़ा कारण है। भारत में अशिक्षित लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है। ऐसे लोगों की सोच अंधविश्वास को परखने में धोखा खा जाती है। क्योकि बिना पढ़े-लिखे लोग यही सोचते है कि दहेज के बिना हमारी बेटियों का विवाह होना मुश्किल है। अशिक्षित लोग दहेज को अपराध नहीं बल्कि पति का अधिकार मानते है।
इसके अलावा महिलाओं का अशिक्षित होना भी दहेज को बढ़ावा देता है। क्योकि दहेज लेने वाले लोगो का मानना है कि अशिक्षित लड़कि से शादी करके उन्हें जीवन भर उसकी देखभाल करनी है। इसीलिए अगर उनको दहेज में कुछ उपहार मिल जाए तो थोड़ी सहायता मिल जाती है। लेकिन ये लोग सहायता के नाम पर कीमती उपहार की मांग करते है, जिससे वह अपनी दहेज की लालच पूरा कर सके।
- दहेज एक सम्मान का विषय
आज भारत के कई समाजों में दहेज को एक सम्मान का विषय बताया जाता है। जो व्यक्ति जितना अधिक दहेज देगा, उतना ही लोग उसका सम्मान करेंगे। और यदि कोई व्यक्ति दहेज नहीं लेता है तो समाज में उसको कोई सम्मान नहीं देगा और लोग उसे नफरत की नज़रो से देखेंगे। लेकिन भारत का हर परिवार तो अमीर नहीं हो सकता। अब ऐसे परिवारों के लिए अपनी बेटियों की शादी करना बहुत मुश्किल हो जाता है। इन सभी की वजह से दहेज जैसी गेरकानूनी प्रथा को और बढ़ावा मिलता है।
- दहेज के अन्य कारण
हर पुरुष एक खूबसूरत महिला को अपने पत्नी के रूप में देखना चाहता है। लेकिन अगर किसी महिला का रंग सांवला है या उसके शरीर में कोई क्षति है, तो लड़के वालो को दहेज की लालच देकर उनका विवाह किया जाते है। इसकी वजह से भी दहेज प्रथा को गति मिलती है।
इसके अलावा बेरोजगारी भी इस खतरनाक प्रथा को बढ़ावा दे रही है। क्योकि जब एक बेरोजगार युवक को शादी का प्रस्ताव भेजा जाता है, तब उसके मुंह से सबसे पहला शब्द यही निकलता है कि हमें अपना व्यापार शुरू करने के लिए कुछ धन की आवश्यकता है। यानि वे परोक्ष रूप से दहेज की मांग रखते है। ऐसे लोगों को कभी दहेज नहीं देना चाहिए, क्योकि ये न तो व्यापार करते हैं और न ही नौकरी। और जब दहेज के पैसे खत्म हो जाए तो बिचारी महिलाओं को परेशान करना शुरू कर देते है।
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क्या दहेज प्रथा से कोई लाभ होता है?
हमारे देश में कई लोग दहेज जैसे गेरकानूनी कार्य को लाभकारी बताते है। उनके मुताबिक शादी के बाद पति-पत्नी स्वतंत्र रहना ज्यादा पसंद करते है। परंतु इस समय वह आर्थिक रूप से इतने अच्छे नहीं होते है। इसलिए अगर उन्हें दहेज में कुछ पैसे, फर्नीचर और अन्य घरेलू सामान मिल जाए तो शुरुआती जीवन में कुछ सहायता मिल जाती है।
लेकिन हमें इन लोगों से यह सवाल पूछने की जरूरत है कि दहेज का सारा बोझ केवल लड़की के परिवार पर ही क्यों डाला जाता है। अगर दोनों परिवार समान रूप से खर्च करे तो किसी को ज्यादा निवेश नहीं करना पड़ेगा। परंतु वर्तमान में ऐसी मानसिकता वाले लोग बहुत कम है।
इसके अलावा कई लोगो का यह भी कहना है कि जो लड़कियां दिखने में अच्छी नहीं होती या उन्हे शरीर में कोई समस्या हो तो उनके लिए पति मिलना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। लेकिन अगर ऐसी महिलाओं की शादी के लिए लड़के वालो को दहेज की लालच दी जाए तो वह शादी कर लेते है। किन्तु ऐसे लोग जब दहेज खत्म हो जाता है, तब महिलाओ को परेशान करने लगते है। अब इन महिलाओं को कौन न्याय दिलाएगा? मुझे नहीं लगता की, इस प्रथा से भारत और विश्व में किसी को फायदा हो सकता है। इससे सिर्फ भयानक नुकसान ही होता है।
दहेज प्रथा की हानि या दुष्परिणाम
अगर कोई पुरुष केवल दहेज के लिए हमारी बेटी से शादी करे, तो ऐसी जगह हमारी बेटियाँ कभी खुश नहीं रह सकती। क्योकि जब तक हमारा दिया हुआ धन उनके पास है तब तक हमारी बेटी खुश है। लेकिन दहेज खत्म होने के बाद ये लोग अपना असली रूप दिखाते है और बेटियों को परेशान करना शुरू कर देते है।
इसलिए आए दिन हम दैनिक समाचार में देखते है कि दहेज के लिए एक महिला को जिंदा जला कर मार दिया गया। वर्तमान में ऐसी घटनाएं बहुत तेजी से बढ़ रही है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2016 मे दहेज के लिए 7621 महिलाओ कि हत्या हुई थी।
इसके अलावा दहेज के कारण कई परिवारों की आर्थिक स्थिति खराब हो जाती है। क्योंकि लड़की कि शादी में सजावट, खानपान, दहेज और रिश्तेदारों को उपहार देने की सारी जिम्मेदारी उसके माता-पिता पर होती है। इसलिए कई माता-पिता बेटी के जन्म से ही पैसो की बचत करना शुरू कर देते है। लेकिन फिर भी अगर शादी के वक्त पैसे कम हो, तो वह अपने रिश्तेदार, दोस्तों और ब्याज देने वाले लोगों से पैसे उधार लेकर खुद एक बड़े कर्जे के नीचे दब जाते है। उनका पूरा जीवन ब्याज चुकाने में ही बीत जाता है। लेकिन अगर ब्याज ज्यादा हो तो कई माता-पिता आत्महत्या भी कर लेते है।
दहेज की वजह से कई लोग भ्रष्टाचार का सहारा लेते है, क्योंकि वे जानते हैं कि बेटी की शादी के लिए उन्हें अधिक धन की आवश्यकता होगी। इसके लिए वह रिश्वत लेना, टैक्स चोरी करना आदि भ्रष्ट तरीके अपनाते है। इससे हमारे देश में भ्रष्टाचार का प्रमाण बढ़ता है और अंत में हमारे देश का ही विकास खराब होता है।
दहेज महिलाओ के लिए तनाव का कारण बनता है। क्योकि जब वह ससुराल जाती है, तब अक्सर ससुराल वाले अपनी बहू के दहेज की तुलना आस-पास की अन्य बहू से करते है। ऐसे लोग महिलाओं को अपमानित करने का कोई मौका नही छोडते। अगर कोई महिला इतना कष्ट सहने के बाद अपने पति और ससुराल वालों को छोड़कर अकेली रहे तो हमारा कठोर समाज उसे बुरी नजर से देखता है। और अंत में जब कष्ट न झेल पाए तो कोई महिला डूब कर मर जाती है तो कोई ट्रेन के नीचे कटकर। उन्हे आत्महत्या ही अंतिम विकल्प दिखता है।
दहेज के कारण आज कन्या भ्रूण हत्या बढ़ती जा रही है। कन्या भ्रूण हत्या यानि माँ के पेट में ही बेटा या बेटी का परीक्षण करना और यदि बच्ची है तो उसको पेट में ही मार देना। कई माँ-बाप यह सोचकर बेटियों को गर्भ में मार देते है कि बेटी की शादी कैसे होगी या दहेज कैसे देंगे। इसलिए जब बेटी का जन्म ही नहीं होगा तो उनको दहेज भी नहीं देना पड़ेगा इसे देखकर कई बार ऐसा लगता है कि आज इंसानियत पूरी तरह से मर चुकी है। दहेज की वजह से आज योग्य लड़कीयो की उम्र होने के बाद भी शादी नहीं हो पाती या योग्य स्त्रियों को अयोग्य पति के साथ शादी करनी पड़ती है। इसके अलावा भी दहेज प्रथा के कई दुष्परिणाम है।
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दहेज प्रथा को रोकने के उपाय
- दहेज प्रथा के बढ़ते अपराधो को देख भारत सरकार ने इसके खिलाफ दहेज प्रतिबंध अधिनियम 1961 का कानून बनाया है। इस कानून के अंतर्गत दहेज देना और लेना दोनों ही अपराध है। इस कानून के तहत अगर आप दहेज देते या लेते हुए पकड़े जाते है, तो आपको कम से कम 5 साल की जेल और 15,000 रुपये का जुर्माना देना पड़ेगा।
- इसके अलावा अगर किसी महिला को उसके ससुराल वाले दहेज की मांग करके भावनात्मक और शारीरिक रूप से दुर्व्यवहार करे तो घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत वह महिला ससुराल वालों के खिलाफ शिकायत कर उन्हें जेल भेज सकती है।
- दहेज प्रथा को रोकने के लिए हमें महिला शिक्षा को बढ़ावा देना होगा। जितनी अधिक महिलाएं शिक्षित होंगी, उतनी ही वे अपराधों के खिलाफ लड़ने में सक्षम होंगी। एक पढ़ी-लिखी लड़की कभी दहेज नहीं देगी चाहे वह बेटी के रूप में हो या सास के रूप में।
- इसके साथ-साथ हमें लड़का-लड़की में भेदभाव बंद करके देश मे लैंगिक समानता लानी होगी। हमें दोनों को समान अधिकार और प्यार देना है। क्योकि जब तक हम लड़का-लड़की में भेदभाव करते रहेंगे तब तक दहेज प्रथा को और बढ़ावा मिलता रहेगा।
- हमें दहेज प्रथा के खिलाफ सामाजिक जागरूकता फैलानी है ताकि हम बड़े पैमाने पर लोगों को दहेज प्रथा के प्रति जागरूक कर सकें। हम न तो दहेज लेंगे और न ही देंगे, इस सूत्र को हमें भारत के हर घर तक पहोंचाना है।
- इस प्रथा का बहिष्कार हमे अपने घर से ही शुरू करना होगा। इसके अलावा अगर हमारे युवा पुरुष और महिला इसका विरोध करने लगें तो हम दहेज की कमर तोड़ सकते है। क्योकि यह दोनों दहेज के मुख्य किरदार है।
- हम सभी भारतवासियों को मिलकर इस कुप्रथा के खिलाफ आवाज़ उठानी होगी। इसके साथ-साथ हमें लोगो को समझाना होगा कि दहेज सिर्फ एक प्रेम का उपहार है, जबरदस्ती से खींच लेने वालो संपत्ति नहीं। तभी हम दहेज को जड़ से खत्म कर सकते है।
निष्कर्ष
दहेज प्रथा ने कई हसते-खेलते परिवारों को निर्जन किया है और कई ज़िंदगीयो को उजाड़ा है। दहेज हमारी भारतीय संस्कृति पर एक बड़ा कलंक है। इसीलिए तो हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी ने कहा था कि यदि कोई पुरुष दहेज को अपने विवाह के लिए एक जरुरी शर्त बनाता है, तो वह अपने देश की शिक्षा को बदनाम करता है और महिलाओं का अपमान करता है। अंत मे यही कहना चाहूँगा की मत जलाओ बेटियों को धन-दौलत और मान-सम्मान के लिए, नहीं तो एक दीन आप की बेटियां भी जल जाएंगी।
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FAQ
Q- दहेज प्रथा की शुरुआत कब हुई?
ANS- भारत के सबसे बड़े पौराणिक ग्रंथ रामायण और महाभारत में माता-पिता द्वारा बेटियो को दहेज देने का उदाहरण मिलता है। इसके अलावा उत्तरवैदिक काल में भी दहेज प्रथा के कुछ उदाहरण मिलते है। लेकिन उस समय दहेज प्रथा का स्वरूप आज की दहेज प्रथा से बिल्कुल अलग था।
Q- दहेज प्रथा पर नियंत्रण क्यों आवश्यक है?
ANS- सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2016 में दहेज के लिए 7621 महिलाओ कि हत्या हुई थी। और वर्तमान में ऐसी घटनाएं बहुत तेजी से बढ़ रही है। इसलिए दहेज प्रथा पर नियंत्रण आवश्यक है।
Q- दहेज प्रथा एक अभिशाप है कैसे?
ANS- आज एक माता-पिता को अपनी बेटी की शादी के लिए दहेज में धन और अन्य कीमती भेट-उपहार देने ही पड़ते है। अगर दहेज में धन और तोहफे नहीं दिये जाते तो ससुराल में लड़कियो को मारा जाता है। इस तरह आज के आधुनिक युग में दहेज प्रथा एक अभिशाप बन चुका है।
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