(2022) भारतीय संस्कृति पर निबंध- Essay on Indian Culture in Hindi

पूरे विश्व में भारत एकमात्र ऐसा देश है, जहां अलग-अलग धर्म, जाति, पंथ, संस्कृति और परंपराओ के लोग मिलजुल कर शांति से रहते है। इसीलिए भारत को अनेकता में एकता का देश कहा जाता है। आज हम इन्हीं विविधताओं में से हमारी संस्कृति के बारे में जानने वाले है। भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृतियों में से एक है। सम्मान, मानवता, प्रेम, परोपकार, भाईचारा, भलाई, धर्म आदि हमारी संस्कृति की मुख्य विशेषताएं है। आज हर देश आधुनिकता की दौड़ अपनी संस्कृतियों को छोड़ रहा है, लेकिन हम भारतीयो ने आज भी अपनी संस्कृति, परंपरा और मूल्यों को नहीं छोड़ा है। इस वजह से हम एक ही देश में विविधता के साथ भी एक होकर शांति से रह पाए है।

 

Table of Contents

संस्कृति का अर्थ क्या है 

हमारे प्राचीन ग्रंथो में संस्कृति का अर्थ संस्कार बताया गया है। इसके अलावा सुधार, शुद्धि और सजावट जैसे शब्द भी प्राचीन ग्रंथो में संस्कृति के लिए उपयोग किए गए है। कहा जाता है कि कौटिल्य ने विनय शब्द के अर्थ में संस्कृति शब्द का उपयोग किया था। भारत के चार वेदों में से एक यजुर्वेद में संस्कृति शब्द को सृष्टि कहा गया है।

संस्कृति को साधारण भाषा में समझें तो एक सामान्य मनुष्य को सामाजिक प्राणी बनाने में जिन मूल्यों, तत्त्वों और मान्यताओं का योगदान होता है, उसे ही संस्कृति कहते है। संस्कृति हमें जीवन के आदर्शों का पालन करने की प्रेरणा देती है। इसके अलावा मनुष्य को विरासत में मिली कोई चीज़ जैसे शिल्प, कला या विचार भी संस्कृति कहलाती है।

संस्कृति दुनिया के किसी भी देश, समुदाय, जाति और धर्म के लिए एक आत्मा है। और उनकी पहचान उनकी संस्कृति से ही की जाती है। लेकिन आधुनिक बनने की दौड़ में कई देशों ने अपनी संस्कृति को मिटा दिया है। जबकि भारतीय संस्कृति न कोई मिटा सकता है और ना ही किसी के अंदर इतनी शक्ति है कि वो भारतीय संस्कृति को मिटा सके। इसलिए भारतीय संस्कृति को विश्व की सबसे प्राचीनतम संस्कृति भी कहा जाता है।

भारतीय संस्कृति में मानव कल्याण की भावना बहुत ज्यादा है। यहां पर हर कार्य लोगो के हित और सुख पर निर्भर करता है। भारतीय संस्कृति वसुधैव कुटुम्बकम जैसे उद्देश्यो पर आधारित है। वसुधैव कुटुम्बकम यानि सभी सुखी और निरोगी रहे, सबका कल्याण हो और कोई भी मनुष्य दुखी न हो।

 

संस्कृति और सभ्यता मे अंतर 

भले ही आज कुछ लोग संस्कृति और सभ्यता को एक मानते है, लेकिन इन दोनों में काफी अंतर है। क्योकि सभ्यता का सबंध मनुष्य के भौतिक विकास से है, जबकि संस्कृति का सबंध मनुष्य की सोच, विचार और अध्यात्मीक चीज़ों से है। मनुष्य का रहन-सहन, खान-पान या अन्य कोई बाहरी चीज़ को हम सभ्यता कह सकते है। परंतु संस्कृति का क्षेत्र तो काफी गहन और व्यापक है।

bhartiy sanskruti par nibandh

सभ्यता भौतिक अवस्था को दर्शाती है, जबकि संस्कृति बौद्धिक और आध्यात्मिक अवस्था को दर्शाती है। लेकिन इन दोनों के बीच बेहद घनिष्ठ संबंध है। जैसे एक मनुष्य किसी चीज़ को बनाता है, तो उसमें उसका शरीर और विचार दोनों काम करते है। इसलिए सभ्यता को शरीर और संस्कृति को आत्मा कहा जाता है। प्राचीन काल से ही विश्व में भारतीय संस्कृति ने सभ्यता के साथ आदरपूर्ण स्थान प्राप्त किया है।

 

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भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषताएं

इस आधुनिक युग में भी हम भारतीयों ने अपनी प्राचीन संस्कृति को कभी नहीं छोड़ा, इसकी सबसे बड़ी वजह शायद हमारी संस्कृति की मुख्य विशेषताएं है। तो आइए एक-एक करके हम सभी भारतीय संस्कृति की विशेषताओं को जानते है।

  • प्राचीनता

भारतीय संस्कृति की सबसे पहली विशेषता प्राचीनता है। मध्य प्रदेश के शैल चित्रों और नर्मदा घाटी में मिले कुछ पुरातत्वीय प्रमाणों से हमें पता चला कि भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति है। इसके अलावा सिंधु घाटी सभ्यता से भी हमें पता चला कि हमारी संस्कृति लगभग पांच हजार साल पुरानी है। वेदों में भी हमें भारतीय संस्कृति की प्राचीनता का प्रमाण मिलता है। लेकिन कुछ अंतरराष्ट्रीय प्रमाणों के मुताबिक भारतीय संस्कृति रोम, मिस्त्र, यूनानी और बेबीलोनिया जैसी संस्कृतियों के समकालीन है।

  • निरंतरता 

भारतीय संस्कृति की दूसरी विशेषता है, निरंतरता। हमारी संस्कृति प्राचीन होने के साथ-साथ निरंतरता भी है। जिसके कारण ही भारतीय संस्कृति रोम, मिस्त्र, यूनानी, ईरान, अक्काद और बेबीलोन जैसी संस्कृतियों की तरह खत्म नहीं हुई। सदियों से चली आ रही कई परंपराओं को हम आज भी ऐसे ही निभाते आ रहे है। जैसे की सूर्य, वट और पीपल को देवी-देवता मानकर उनकी पूजा करना कई सदियो से चला आ रहा है। इसके अलावा वेदों और उपनिषदों की आस्था और विश्वास को आज भी माना जाता है। इतनी सदियों बाद भी हमारी संस्कृति के मूल्यों, आधारभूत तत्वों और वचनो में निरंतरता है।

  • वसुधैव कुटुंबकम की भावना 

वसुधैव कुटुंबकम का अर्थ है, पूरी दुनिया एक ही परिवार है। हमारी संस्कृति शुरु से ही अत्यंत उदार और समन्वयवादी रही है। हम लोग अपनी उन्नति और विकास के साथ-साथ संपूर्ण विश्व के विकास बारे में भी सोचते है। हमारे अंदर राष्ट्रवाद की भावना है, लेकिन जब किसी अन्य राष्ट्र पर संकट आता है तो हम उसकी मदद के लिए हमेशा तैयार रहते है।

हम सभी मनुष्यों को समान समझते है और उनके कल्याण की कामना करते है। क्योंकि हमारी संस्कृति ने हमें यह सिखाया है। इसलिए भारतीय संस्कृति विश्व की अन्य संस्कृतियों से अलग है। वसुधैव कुटुंबकम के महत्व को देखते हुए भारतीय संसद के प्रवेश कक्ष में ही इसे अंकित किया गया है। 

  • आध्यात्मिकता

आध्यात्मिकता को भारतीय संस्कृति का प्राण कहा जाता है। त्याग और तपस्या आध्यात्मिकता के मुख्य भाग है। मनुष्य जब त्याग को अपना लेता है, तब उसे हर चीज़ में संतोष प्राप्त होता है। उसके अंदर दूसरों के प्रति सहानुभूति होती है। त्याग से मनुस्य के अंदर लालच और स्वार्थ जैसी बुरी भावनाओं का विनाश होता है। वह हर काम को संयम से करने की कोशिश करता है। भारत के लोग ना केवल अपने धर्मों में विश्वास रखते है, बल्कि अन्य धर्मो का भी दील से सम्मान करते है।

  • अनेकता में एकता

भारत उत्तर के पहाड़ी इलाकों से लेकर पूर्व की ब्रह्मपुत्र और पश्चिम की सिंधु नदियों तक फैला हुआ है। दक्षिण में घने जंगलों से लेकर गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदिया हमारे देश में शामिल है। पश्चिम के रेगिस्तानो से लेकर दक्षिण के तटीय प्रदेशो तक विशाल भारत है। इस तरह भारत में भौगोलिक रूप से अनेक विविधताए है।

भौगोलिक विविधताओं के साथ-साथ भारत की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में भी काफी भिन्नता है। क्योकि भारत में विभिन्न प्रकार के धर्म, जाति, पंथ, लिंग समुदाय और भाषा के लोग रहते है। इन लोगों के खान-पान, रहन-सहन और बोल-चाल में काफी भिन्नता है। लेकिन भले ही भारत में धार्मिक और भौगोलिक रूप से कई विविधताएं हैं, लेकिन सांस्कृतिक रूप से भारत एक है। इतनी विविधताओ के बाद भी भारत के सभी लोग मिलजुल कर प्रेम से रहते है। इसलिए भारत को अनेकता में एकता का देश कहा जाता है।

  • सहनशीलता

सहनशीलता भी भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषताओं में से एक है। कई सदियो पहले जब भारत पर विदेशी आक्रमण हुआ करते थे, तब भारत के लोगों पर कई आत्याचार किए जाते थे। इसके अलावा जब भारत पर अंग्रजी हुकूमत थी, तब भी हमारे देशवासियों पर बहुत जुल्म किया जाता था। लेकिन उस समय देश में शांति बनाए रखने के लिए भारतीयों ने सभी अत्याचारों को सहन किया था। इसका मतलब यह नहीं था कि हम इन लोगों से डरते थे। परंतु हमारी संस्कृति ने दी हुई सहनशीलता को हम कैसे भूल सकते थे।

सहनशीलता का प्रचार करने के लिए और इसका सही ज्ञान लोगो तक पहुँचाने के लिए भारत में कई महापुरुष जन्मे। जिसमें महावीर, बुद्ध, कबीर, चैतन्य, नानक और महात्मा गांधी जैसे कई नाम शामिल है।

  • ग्रहणशीलता

जब भारत पर विदेशी आक्रमण हुए, तब अनेक जातियों के लोग भारत में आकर बस गए थे। जिसमें शक, हूण, यवन और कुषाण जाति के लोग मुख्य थे। इन विदेशी लोगों के साथ-साथ उनकी संस्कृति भी भारत आई, लेकिन भारतीय संस्कृति के प्रहार ने इन सभी संस्कृतियो को अपनी धारा में प्रवाहित कर दिया। यह लोग हमारी संस्कृति में इतने गुल गए कि बाद में यही लोग भारतीय संस्कृति के प्रचारक बन गए। जैसे कि शको के राजा रुद्रदामन ने वैदिक धर्म, कुषाणो के शासक कनिष्क ने बौद्ध धर्म और हूणों ने शैव धर्म को अपना लिया था। इस तरह भारतीय संस्कृति की एक विशेषता उसकी ग्रहणशीलता भी है।

 

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भारतीय संस्कृति पर पाश्चात्य संस्कृति का दुष्प्रभाव

अंग्रेज़ो से पहले भारत पर जितनी भी विदेशी प्रजा आई थी, वह सभी प्रजाओ ने भारतीय संस्कृति से प्रभावित होकर उसे अपना लिया था। लेकिन अंग्रेज़ोने पहली बार हमारी संस्कृति को दबाने की कोशिश की थी। अंग्रेज़ जानते थे कि किसी भी देश पर शासन करने के लिए सबसे पहले उस देश की संस्कृति को मिटा दो। क्योकि जब लोग अपनी संस्कृति को भूल कर अंग्रेज़ो की संस्कृति अपना लेंगे तो वे सभी लोग मानसिक रूप से अंग्रेज़ बन जाएंगे। इसी चीज़ को अपनाकर अंग्रेज़ो ने न सिर्फ भारत पर शासन किया बल्कि विश्व के और भी कई देशो को अपना गुलाम बनाया था।

अंग्रेज़ो के समय में भारत के सामाजिक विचार पर पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव था। जैसे कि संयुक्त कुटुंब अब कई परिवारों मे विभाजित होने लगे थे। लोगो के अंदर भौतिकवाद यानि भोग-विलास आने लगी थी। अब हमारा समाज धीरे-धीरे आधुनिकता की ओर बढ़ने लगा। जिसकी वजह से हम सभी लोग भारतीय सांस्कृति के मूल लक्ष्य से भटक गए थे।

अब धर्म और दर्शन मे नए-नए अविष्कार होने लगे, कला और विज्ञान के नाम पर नवीन साधनो का विकास हुआ। हमारी सामाजिक और राजनीतिक स्थिति में कई बदलाव आए, जिसके परिणामस्वरूप पश्चिमी संस्कृतियों ने भारत और एशियाई देशो में कई नवीन चेतनाओ की शुरुआत की। इसकी वजह से अब लोग देश के लिए त्याग और बलिदान को भूलकर सिर्फ अपने स्वार्थ के बारे में सोचने लगे थे।

लेकिन अंग्रेजों से आजाद होने के बाद भारत के लोगों ने फिर से अपनी संस्कृति को पहचाना और उसे सही अर्थों में अपनाना शुरू किया। इसीलिए कभी भी देश की संस्कृति को मिटने न दे, क्योकि संस्कृति के मिटने के बाद देश को मिटने में देर नहीं लगती।

 

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संस्कृति का संरक्षण कैसे करे

यदि कोई देश अपनी संस्कृति को संरक्षित नहीं करता है, तो शायद आने वाले कुछ सालो में उसे बहुत बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा। क्योकि इतिहास गवाह है कि जिस देश ने अपनी संस्कृतियों को छोड़ कर आधुनिक बनने की चक्कर किसी और देश की संस्कृति को अपनाया, आज वह दुनिया के नक्शे से गायब हो चुके है। यानि की उन पर किसी और देश का शासन चल रहा है। इसीलिए हमेशा अपनी संस्कृति का संरक्षण करे।

इसके लिए आप ज्यादा-से-ज्यादा अपनी धार्मिक परंपराओं के बारे में जानें, अपनी राष्ट्रीय भाषा का अधिक उपयोग करे, राजनैतिक और सामाजिक महत्व को समझे, अपनी संस्कृति पर गौरव करे, उसे दैनिक जीवन के आचरण में लाए और इन सभी चीज़ों को हमारी आने वाले पीढ़ी तक पहोचाए। इस तरह अगर हम इतनी चीज़ों को समझ लें और अपने दैनिक जीवन में अपना लें तो अपनी संस्कृति का संरक्षण कर सकते है।

 

निष्कर्ष 

भारतीय संस्कृति एक विचार है, जिसे कोई भी मनुष्य अपनाकर खुद का विकास कर सकता है। लेकिन आज की हमारी युवा पीढ़ी पश्चिमी संस्कृति की ओर ज्यादा बढ़ रही है। हमें उन संस्कृतियों को छोड़कर विशालता और उदारता वाली भारतीय संस्कृति को अपनाना होगा। तभी हम भारत को एक विकसित राष्ट्र बना सकेंगे। इतना सब कुछ जानने के बाद शायद अब आप लोगों को पता चल ही गया होगा कि, आखिर संस्कृति क्या है और हमें इसकी रक्षा करने की आवश्यकता क्यों है?


अगर आपको इस निबंध से लाभ हुआ हो, तो इसे share करना न भूले। भारतीय संस्कृति पर निबंध पढ़ने के लिए आप सभी का धन्यवाद (Essay on Indian Culture in Hindi

 

FAQ

Q- हमारी भारतीय संस्कृति क्या है?

ANS- हमारे प्राचीन ग्रंथो में संस्कृति का अर्थ संस्कार बताया गया है। एक सामान्य मनुष्य को सामाजिक प्राणी बनाने में जिन मूल्यों, तत्त्वों और मान्यताओं का योगदान होता है, उसे ही संस्कृति कहते है।

Q- भारतीय संस्कृति की विशेषता क्या है?

ANS- प्राचीनता, निरंतरता, वसुधैव कुटुंबकम की भावना, आध्यात्मिकता, अनेकता में एकता, सहनशीलता, ग्रहणशीलता जैसी कई विशेषताएं है।

Q- भारतीय संस्कृति को श्रेष्ठ क्यों माना गया?

ANS- भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति है। इसके अलावा भारतीय संस्कृति में अब तक कोई बदलाव नहीं किया गया। इसलिए भारतीय संस्कृति को श्रेष्ठ माना जाता है।


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