भारत सरकार ने जल प्रदूषण को रोकने के लिए कई कदम उठाए है। जैसे भारत में साल 1974 में जल प्रदूषण निवारण अधिनियम बनाया गया था। 1975 में जल प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम बनाया गया था। इसके साथ-साथ आती-जाती सरकारो ने भी इसमें समय-समय पर विभिन्न संशोधन किए। इन सभी अधिनियमो का मुख्य उदेश्य जल की जो पहले गुणवत्ता थी उसको फिर से लौटाना तथा उसे स्वच्छ रखना है।
इन अधिनियमो की मुख्य विशेषताएं
- जल प्रदूषण का निवारण करना और उसको नियंत्रण में लाना।
- जल को स्वच्छ रखना और उसकी गुणवत्ता को बनाए रखना।
- प्रदूषित पानी का पुनः उययोग करने की तकनीक को अपनाना।
- जल प्रदूषण के निवारण और नियंत्रण के लिया केन्द्र तथा राज्य बोर्ड का गठन करना।
जल प्रदूषण निवारण और नियंत्रण अधिनियम 1974 की धारा 2 के अनुसार जल प्रदूषण का अर्थ यह है कि ऐसा जल जो मनुष्य के लिए नुकसानकारक हो तथा औद्योगिक, कृषीय, घरेलू, व्यापारिक या अन्य उपयोग में मानवी, पशु-पक्षी और पेड़-पौधों के स्वास्थ्य को क्षतिग्रस्त करता हो। सरल भाषा में समझे तो कुछ हानिकारक पदार्थ के कारण जल की शुद्धता तथा गुणों में परिवर्तन आए उसे जल प्रदूषण कहते है।
साल 1984 में भारत की पवित्र नदी गंगा के जल प्रदूषण को रोकने के लिये भी गंगा एक्शन प्लान नाम की एक योजना सरकार द्वारा शुरु करी गई थी। इस योजना में हरिद्वार से हूगली तक 27 शहरों के लगभग 120 कारखानों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। क्योकि यह कारखाने बहुत मात्रा में जल को प्रदूषित करते थे।
जल-प्रदूषण के मुख्य स्रोत
कई साल पहले उद्योगों से निकलने वाले धुएं को औद्योगिक क्रांति का प्रतीक माना जाता था। इस धुएं से देश और अर्थव्यवस्था के विकसित होने का अहसास होता था। इसके अलावा फैक्ट्रियों से निकलने वाला रंगीन और गंदा पानी इस बात का संकेत देता था कि फैक्ट्री में उत्पादन चालू है।
लेकिन उस समय किसी को इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि इस तरह का जल और वायु प्रदूषण कुछ समय बाद दुनिया की सबसे गंभीर समस्या बन जाएगा।हमारी संस्कृति और सभ्यता का उदय इन नदियों के किनारे ही हुआ था, जिनहे आज हल लगातार प्रदूषित कर रहे है।
मनुष्य के शरीर में 65 प्रतिशत से भी ज्यादा हिस्सा जल का है। लेकिन फिर भी आज मानवी द्वारा काफी अधिक मात्रा में जल को प्रदूषित कर रहा है। एक अनुमान के मुतबिक भारत के एक लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों में प्रतिदिन 16,662 मिलियन लीटर खराब पानी निकलता है।
इसके साथ-साथ हमारे देश की अनुमानित वार्षिक मांग बढ़ रही है। हमारे देश में वर्तमान जल की अनुमानित वार्षिक मांग 605 अरब घनमीटर है, जो वर्ष 2025 तक 1093 अरब घनमीटर हो जाएगी।
जल को प्रदूषित करने वाले हानिकारक पदार्थ
मरकरी एक जहरीली धातु है, जिसके प्रभाव से जापान में एक साथ 43 लोगो की मृत्यु हुई थी। हमारे पीने के पानि में अगर मरकरी हो तो वह मनुष्य के मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुँचाता है।
पोटैशियम बाइक्रोमेट और पोटैशियम क्रोमेट जैसे रासायनिक पदार्थ के निर्माण में क्रोमियम काफी मात्रा में उपलब्द्ध होता है। और क्रोमियम से मनुष्य को कैंसर हो सकता है।
- लेड
भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के मिदनापुर गाँव में कई जल स्रोतों में लेड धातु पाया गया है। यदि यह धातु शरीर में प्रवेश कर जाए तो पाचन तंत्र और मस्तिष्क पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।
- आर्सेनिक
प्राकृतिक भूगर्भीय संरचनाओं के भूमिगत जल में आर्सेनिक धातु से प्रदूषित होने की अनेक स्थान भारत में पाये गए है। आर्सेनिक धातु से मानवी को मानसिक रोग, हड्डियों में विकृति और चर्म रोग होते है।
- कैडमियम
कैडमियम धातु से मनुष्य को हृदय रोग, उल्टी, दस्त जैसे रोग हो सकते है।
निष्कर्ष :
जल, वायु और भूमि प्रदूषण की वजह से ही जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग और अम्लीय वर्षा जैसे गंभीर परिणाम हमको आगे चल कर देखने को मिलते है।एक कवि ने जल के बारे में बहुत अच्छा लिखा है कि पहले जल प्रदूषण दूर करे, फिर अपनी सावधानियां अपनाएं, ना जहर घोले इसमें, ना यू कीचड़ फैलाये, जल ही हे हमारा जीवन, इसको हम अपनाकर स्वच्छ भारत बनाए। (जल प्रदूषण निवारण संशोधन अधिनियम)
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